पिता
माँ, घर का गौरव तो पिता घर का अस्तित्व होते हैं ,
माँ के पास अश्रुधारा तो पिता के पास संयम होता है,
दोनों समय का भोजन माँ बनाती है ,तो जीवन भर के
भोजन की व्यवस्था करने वाले पिता को हम सहज भूल जाते हैं .
कभी लगी ठोकर या चोट तो " ओ माँ " ही मुंह से निकलता है .
लेकिन जब रास्ता पार करते समय कोई
ट्रक पास आकर ब्रेक लगाये तो "बाप रे " मुंह से निकलता है .
क्योंकि छोटे - छोटे संकटों के लिए माँ है ,पर बड़े संकट
आने पर पिता ही याद आते हैं,
पिता एक वट वृक्ष हैं,
जिसकी शीतल छाँव में संपूर्ण परिवार सुख से रहता है .
- पंडित महादेव शर्मा, नैला