शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

Ma. Balihar Singh Jee

मा. बलिहार सिंह जी अकलतरा में आयोजित सद्भावना क्रिकेट मैच के दौरान ......

Manniya Balihar Singh Jee

छत्तीसगढ़ राज्य निशक्तजन वित्त एवं विकास निगम के अध्यक्ष मा. बलिहार सिंह जी के साथ .....

भाजपा प्रदेश महामंत्री (संगठन ) माननीय रामप्रताप सिंह जी के साथ .....


गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

खिलाडियों का सम्मान

खेल एवं युवक कल्याण विभाग द्वारा अकलतरा में आयोजित पाईका खेल अंतर्गत मैराथन दौड़ के विजेताओं को सम्मानित करते हुए ..२३ दिसंबर 2011

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

वरिष्ठो का सम्मान

अकलतरा में आयोजित एक कार्यक्रम में वरिष्ठो का सम्मान करते भाजपा जिला महामंत्री प्रशांत सिंह ठाकुर

Sant Gurughasidas Jayanti Karyakram, Baloda 2

सतनाम के प्रवर्तक संत गुरु घासीदास जी का पुण्य स्मरण ...

Sant Gurughasidas Jayanti Karyakram, Baloda

 बलौदा (सोन बरसा ) .. अकलतरा विधानसभा के ग्राम सोनबरसा में संत गुरुघासीदास जयंती कार्यक्रम का आयोजन किया गया ...कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में जनसमूह को संबोधित करते हुए भाजपा जिला महामंत्री प्रशांत सिंह ठाकुर...

बुधवार, 24 अगस्त 2011

भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा फल वितरण


बलौदा , जांजगीर में भाजपा कार्यकर्ताओं के द्वारा स्थानीय अस्पताल में फल वितरण किया गया . इस अवसर पर भाजपा जिला महामन्त्री प्रशांत सिंह ठाकुर, मंडल अध्यक्ष ओंकार सिंह , भूपेन्द्र गुप्ता , दुर्गेश सोनी , राकेश पटेल , मणिकांत अग्रवाल , हेमंत पटेल एवं अन्य कार्यकर्ता उपस्थित थे .

Jitendra Verma & Dilendra Kaushil


सोमवार, 22 अगस्त 2011

AshtBhuji Maa : Adbhar



माँ अष्टभुजी  मंदिर अडभार



Mata Chaura : Mulmula


                                        ग्राम मुलमुला की कुल देवी स्थल : माता चौरा , जय माँ दुर्गा 

कविता


अच्‍छे बच्‍चे

कुछ बच्चे बहुत अच्छे होते हैं
वे गेंद और ग़ुब्बारे नहीं मांगते
मिठाई नहीं मांगते ज़िद नहीं करते
और मचलते तो हैं ही नहीं

बड़ों का कहना मानते हैं
वे छोटों का भी कहना मानते हैं
इतने अच्छे होते हैं

इतने अच्छे बच्चों की तलाश में रहते हैं हम
और मिलते ही
उन्हें ले आते हैं घर
अक्सर
तीस रुपये महीने और खाने पर।
रचनाकार: नरेश सक्सेना

lingawa mahadev : Nawagarh, Janjgir Champa

नवागढ़  के  लिंगवा  महादेव महराज 

कविता


फिर कोई कृष्ण सा ग्वाला हो,
फिर मीराँ फिर प्याला हो ।

फिर चिड़िया कोई खेत चुगे,
फिर नानक रखवाला हो ।

फिर सधे पाँव कोई घर छोड़ें,
फिर रस्ता गौतम वाला हो ।

फिर मरियम की कोख भरे,
फिर सूली चढ़ने वाला हो ।

हम घर छोड़ें या फूँक भी दें,
जब साथ कबीरा वाला हो ।
रचनाकार: राजेश चड्ढा 

एकात्म सोसायटी के द्वारा बच्चों को पुस्तक वितरण

 कुशाभाऊ ठाकरे की जयंती १५ अगस्त के अवसर पर जांजगीर चाम्पा जिले के विकासखंड अकलतरा के ग्राम  पौना में स्कूली बच्चों को कापी पुस्तक का वितरण एकात्म सोसायटी के सदस्यों के द्वारा किया गया .  

बुधवार, 17 अगस्त 2011

Narsing Sinha :नरसिंग सिन्हा जी : सदस्य छत्तीसगढ़ राज्य अनुसूचित जाती विकास प्राधिकरण




रॉक गार्डन बोतल्दा (खरसिया )

रॉक गार्डन  बोतल्दा (खरसिया ) में प्रशांत सिंह ठाकुर : साथ में हैं राकेश पटेल और हितेश यादव 

प्रशांत सिंह ठाकुर

प्रशांत सिंह ठाकुर : तिरुपति में 

हिन्दू नव वर्ष कार्यक्रम

हिन्दू नव वर्ष कार्यक्रम : जांजगीर का दृश्य , हाई स्कूल जांजगीर को आकर्षक रंगोली से सजाया गया था .

भारत माता पूजन कार्यक्रम

श्री नारायण चंदेल जी (विधान सभा उपाध्यक्ष छत्तीसगढ़ ), भारत माता पूजन कार्यक्रम में , साथ में  है श्री लीलाधर सुल्तानिया जी , श्री रिपुसूदन राठौर जी (पूर्व सांसद प्रतिनिधि )


राम झुला (ऋषिकेश) में प्रशांत सिंह ठाकुर

राम झुला (ऋषिकेश) में प्रशांत सिंह ठाकुर 

Jai Ganga Maiyya


 हर की पौड़ी (हरिद्वार ) में मैं और मेरे मित्र क्रमशः नरेन्द्र राठौर , राकेश पटेल और सुमित सिंह . साथ में राकेश राठौर भी है , जो तस्वीर उतार रहा है....

Balihar Singh Ji

माननीय बलिहार सिंह जी (अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य निशक्त जन वित्त एवं विकास निगम  ) के साथ 
प्रशांत सिंह ठाकुर 

Narendra Rathore Janjgir : My friend


शुक्रवार, 6 मई 2011

पिता

                    पिता 

माँ, घर का गौरव तो पिता घर का अस्तित्व होते हैं ,
माँ के पास अश्रुधारा तो पिता के पास संयम होता है,
दोनों समय का भोजन माँ बनाती है ,तो जीवन भर के 
भोजन की व्यवस्था करने वाले पिता को हम सहज भूल जाते हैं .
कभी लगी ठोकर या चोट तो " ओ माँ " ही मुंह से निकलता है .
लेकिन जब रास्ता पार करते समय कोई 
ट्रक पास आकर ब्रेक लगाये तो "बाप रे " मुंह से निकलता है .
क्योंकि छोटे - छोटे संकटों के लिए माँ है ,पर बड़े संकट 
आने पर पिता ही याद आते हैं,
पिता एक वट वृक्ष    हैं,
जिसकी शीतल छाँव में संपूर्ण परिवार सुख से रहता है .

  - पंडित महादेव शर्मा, नैला

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

उर्जावान जननेता श्री बृजमोहन अग्रवाल जी



Smt. Kamla Patle JI : MP Janjgir-Champa

राजकुमार साहू के ब्लॉग से :हरियाली की रखवाली मां के हाथ में


हरियाली की रखवाली मां के हाथ में

जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम पहरिया के पहाड़ में मां अन्नधरी दाई विराजित हैं। करीब 30 एकड़ क्षेत्र में फैल इस पहाड़ में हजारों इमारती पेड़ है, जिसे लोगों के द्वारा नहीं काटा जाता। पहाड़ में लकड़ियां पड़ी रहती हैं और दीमक का निवाला बनती है, मगर लकड़ियों को उपयोग के लिए कोई नहीं ले जाता। यह भी लोगों के बीच धारणा है कि जो भी मां अन्नधरी दाई के पहाड़ पर स्थित इमारती लकड़ी को घर लेकर गया, उस पर मां की कृपा नहीं होती और उस पर दुखों का पहाड़ टूट जाता है। उसे और उसके परिवार पर आफत आ जाती है। यही कारण है कि पहाड़ पर लकड़ियां सड़ती-गलती रह जाती हैं, लेकिन उसे कोई हाथ नहीं लगाता। इस तरह मां ही हरियाली की रखवाली करती हैं और यह पर्यावरण संरक्षण की दिषा में सार्थक पहल हो रही है। साथ ही इससे समाज में भी संदेष जाता है, क्योंकि आज की स्थिति में जिस तरह जंगल काटे जा रहे हैं, वहीं पहरिया में जो लोगों के मन भावना है, उससे निष्चित ही पर्यावरण संरक्षण की दिषा में कार्य जरूर हो रहा है। जिला मुख्यालय जांजगीर से 20 किमी तथा बलौदा विकासखंड से ग्राम पहरिया की दूरी करीब 10 किमी है। पहरिया, चारों ओर से पहाड़ों और हरियाली से घिरा हुआ है, लेकिन मां अन्नधरी दाई जिस पहाड़ में स्थित है, वह जमीन तल से काफी उपर है। करीब 100 फीट उपर पहाड़ पर हजारों की संख्या में छोटे-बड़े इमारती पेड़ हैं, जिससे हरियाली तो फैली हुई है। साथ ही पेड़ों की कटाई नहीं होने से पर्यावरण संरक्षण में यह सार्थक साबित हो रहा है। यही कारण है कि पहरिया समेत इलाके के लोगों में मां अन्नधरी दाई के प्रति असीम श्रद्धा है और साल के दोनों नवरात्रि में यहां ज्योति कलष प्रज्जवलित भक्तों द्वारा कराए जाते हैं। इसके अलावा मां की महिमा के बखान सुनकर दूर-दूर से लोग पहाड़ीवाली मां अन्नधरी दाई के दर्षन के लिए पहुंचते हैं। ग्राम पहरिया के दरोगा राम का कहना है कि लोगों में मां के प्रति आस्था की जो भावना है और पेड़ों के संरक्षण के प्रति जो लोगों में जागरूकता बरसों से कायम है, वह निष्चित ही समाज के अन्य लोगों के लिए एक अच्छा संदेष ही माना जा सकता है, क्योंकि जहां जंगल दिनों-दि कट रहे हैं और पर्यावरण के हालात बिगड़ रहे हैं, वहीं ग्राम पहरिया में मां अन्नधरी की महिमा की खाति जो परिपाटी चल रही है, वह काबिले तारीफ है और इसे अन्य लोगों को भी आत्मसात करने की जरूरत है। यदि इस तरह पहल अन्य जगहों में होने लगे तो वह दिन दूर नहीं, जब पेड़ों की अंधा-धुंध कटाई में कमी जरूर आ जाएगी। अंत में मां अन्नधरी दाई को प्रणाम और लोगों की आस्था को सलाम। निष्चित ही यह समाज के लिए प्रेरणादायी अवसर है।

जिंदगीनामा the life style : राजकुमार साहू के ब्लॉग से


कचरा बाई : हौसले का एक नाम


महज ढाई फीट कद होने के बावजूद चाम्पा की कचरा बाई का हौसला देख कोई भी एकबारगी सोचने पर विवश हो जायेगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि कचरा बाई, हौसले का एक नाम है। एम्ए राजनीति में शिक्षा लेने वाली कचरा बाई हर किसी से जुदा लगती है, क्योंकि उसका कद ढाई फीट है। कुदरत ने कचरा बाई को भले ही कद काठी कम दिया हो, लेकिन उसके हौसले की उड़ान के आगे यह कमजोरी नहीं बन सकी। उसने कंप्यूटर की भी शिक्षा लेकार यह साबित कर दिया है कि जहाँ चाह होती है। वहां राह खुद बन जाती है। लोगों के बीच कचरा बाई को जैसा सम्मान मिलना चाहिए, बचपन से उसके कद के नसीब नहीं हो सका । हालांकि अब वह समय बीत चूका है और वाही लोग कचरा बाई कि क़ाबलियत कि तारीफ करते नहीं थकते।
चाम्पा के नयापारा की रहने वाली कचरा बाई के परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई और तीन बहने हैं। उसका पिता और मां बीमार रहती है। इस तरह वह और उसका छोटा भाई रामचरण जैसे-तैसे परिवार कि गाड़ी को खिंच रहे हैं। कचरा बाई ने कई बार मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को रायपुर जाकर जनदर्शन कार्यक्रम में अपनी योग्यता और समस्या के बारे में बता चुकी हैं। मुख्यमंत्री ने लिखित में भी उसे उसकी योग्यता के लिहाज से शिक्षाकर्मी बनाने जांजगीर-चाम्पा जिले के अफसरों को निर्देश दिए हैं, लेकिन जिले के अधिकारी हैं कि नियमों की दुहाई देकर उसे नौकरी सेने बच रहे हैं। कचरा बाई ने ना जाने कितनी बार राजधानी रायपुर और जांजगीर कलेक्टोरेट के चक्कर कटी है। अभी हाल ही में कचरा बाई जनदर्शन कार्यक्रम में जाकर मुख्यमंत्री से फिर मिली, एक बार उसे और दिलासा दिलाया गया है की उसे जल्द ही नौकरी मिल जाएगी।
कचरा बाई ने नौकरी पाने की वह योग्यता हासिल की है, जिसके बदौलत उसके परिवार जीने का सहारा मिल जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जिस हौसले के साथ वह जीवन पथ पर आगे बढ़ रही है, इसमें शासन स्टार पर सहयोग की जरुरत उसे है, मगर लालफीताशाही के आगे उसका कुछ बस नहीं चल रहा है। हालांकि जिले के कलेक्टर ब्रजेश चन्द्र मिश्रा ने कचरा बाई की समस्या को देखते हुए कलेक्टोरेट में ही कोई नौकरी देने का उसे दिलासा दिया है। अब देखना होगा की जो ढाई फीट का कद रख कर समाज को सन्देश का कार्य करने वाली कचरा बाई के हित में कुछ होता है की नहीं।

Anurag Singdev Ji :State President Bhatriya Janata Yuva Morcha Chhattisgarh


Rakesh Patel & Anurag Tiwari BJYM Janjgir


मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

Chandrashekhar Ajad


चन्द्रशेखर आजाद

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद'
(23 जुलाई 1907 से 27 फरवरी 1931)
चन्द्रशेखर आजाद.jpg

अमर शहीद पण्डित चन्द्रशेखर आजाद
उपनाम :'आजाद'
जन्मस्थल :भाँवरा गाँव जिला झाबुआ [मध्य प्रदेश]
मृत्युस्थल:अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद [उत्तर प्रदेश]
आन्दोलन:भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठन:हिदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन-1928
पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' (23 जुलाई 1906 - 27 फरवरी 1931) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित और लोकप्रिय क्रान्तिकारी स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे पं० रामप्रसाद 'बिस्मिल' व भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। असहयोग आन्दोलन के अचानक बन्द हो जाने के बाद उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशनके सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने 'बिस्मिल' के नेतृत्व में काकोरी-काण्ड किया और फरार हो गये। 'बिस्मिल' के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ सॉण्डर्स-वध एवम् असेम्बली बम-काण्ड को अंजाम दिया।

अनुक्रम

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[संपादित करें]जन्म तथा प्रारंभिक जीवन

पण्डित चन्द्रशेखर आजाद का जन्‍म मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भावरा गाँव में 23 जुलाई सन् 1906 को हुआ आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत १९५६ के अकाल के समय अपने निवास उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पहले अलीराजपुर रियासत में रहे और फिर भावरा में बस गए। यहीं चन्द्रशेखर का जन्म हुआ। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था।

[संपादित करें]संस्कारों की धरोहर

चन्द्रशेखर आजाद ने अपने स्वभाव के बहुत से गुण अपने पिता पं0 सीताराम तिवारी से प्राप्त किए। तिवारी जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और वचन के पक्के थे। वे न दूसरों पर जुल्म कर सकते थे और न स्वयं जुलम सहन कर सकते थे। भावरा में उन्हें एक सरकारी बगीचे में चौकीदारी का काम मिला। भूखे भले ही बैठे रहें पर बगीचे से एक भी फल तोड़कर न तो स्वयं खाते थे और न ही किसी को खाने देते थे। एक बार तहसीलदार ने बगीचे से फल तुड़वा लिए तो तिवारी जी बिना पैसे दिए फल तुड़वाने पर तहसीलदार से झगड़ा करने को तैयार हो गए। इसी जिद में उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। एक बार तिवारी जी की पत्नी पडोसी के यहाँ से नमक माँग लाईं इस पर तिवारी जी ने उन्हें खूब डाँटा ऑर चार दिन तक सबने बिना नमक के भोजन किया। ईमानदारी और स्वाभिमान के ये गुण आजाद ने अपने पिता से विरासत में सीखे थे।[तथ्य वांछित]

[संपादित करें]आजाद का बाल्य-काल

1919 मे हुए जलियां वाला बाग नरसंहार ने उन्हें काफी व्यथित किया 1921 मे जब महात्‍मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया तो उन्होने उसमे सक्रिय योगदान किया। यहीं पर उनका नाम आज़ाद प्रसिद्ध हुआ । इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे गिरफ़्तार हुए और उन्हें १५ बेतों की सज़ा मिली। सजा देने वाले मजिस्ट्रेट से उनका संवाद कुछ इस तरह रहा -
तुम्हारा नाम ? आज़ाद
पिता का नाम? स्वाधीन
तुम्हारा घर? जेलखाना
मजिस्ट्रेट ने जब १५ बेंत की सजा दी तो अपने नंगे बदन पर लगे हर बेंत के साथ वे चिल्लाते - महात्मा गांधी की जय। बेंत खाने के बाद तीन आने की जो राशि पट्टी आदि के लिए उन्हें दी गई थी, को उन्होंने जेलर के ऊपर वापस फेंका और लहूलुहान होने के बावजूद अपने एक दोस्त डॉक्टर के यहाँ जाकर मरहमपट्टी करवायी। आजाद की जन्म भूमि भावरा आदीवासी बाहुल्य थी बचपन में आजाद ने भील बालको के साथ खूब धनुष बाण चलाये आजाद ने निशानेबाजी बचपन में सीख ली थी ।

[संपादित करें]क्रान्तिकारी संगठन

सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान जब फरवरी १९२२ में चौराचौरी की घटना को आधार बनाकर गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो भगतसिंह की तरह आज़ाद का भी काँग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल,पण्डित चन्द्रशेखर आजाद,शचीन्द्र सान्याल,जोगेश चन्द्र ने 1928 में उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातात्रिक संघ (एच आर ए)का गठन किया । इस संगठन ने जब गाँवों में अमीर घरों पर डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके तो तय किया कि किसी भी औरत के उपर हाथ नहीं उठाया जाएगा। एक गाँव में रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने आज़ाद का तमंचा छीन लिया तो अपने बलशाली शरीर के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उसपर हाथ नहीं उठाया। इस डकैती में क्रान्तिकारी दल के आठ सदस्यों, जिसमें आज़ाद और बिस्मिल शामिल थे, की बड़ी दुर्दशा हुई क्योंकि पूरे गाँव ने उनपर हमला कर दिया था। इसके बाद दल ने केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। १ जनवरी १९२५ को दल ने देशभर में अपना बहुचर्चित पर्चा द रिवोल्यूशनरी (क्रांतिकारी) बांटा जिसमें दल की नीतियों का खुलासा था। इस पैम्फलेट में रूसी क्रांति की चर्चा मिलती है और इसके लेखक सम्भवतः शचीन्द्रनाथ सान्याल थे। " एच आर ए " के गठन के अवसर से ही इन नेताओं में इस संगठन के उद्देश्य प‍र मतभेद था । 8 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फिरोज शाह् कोटला मेँदान में इन सभी क्रांति़कारियो ने एक गुप्त सभा का आयोजन किया इस सभा में भगतसिहं भी सदस्य् बनाये गये इस सभा में तय किया गया की सब क्रांतिकारी दलो को अपने उद्देश्य इस सभा में केन्द्रीत करने चाहिये और समाजवाद को अपना उद्देश्य घोषित किया । " हिदुंस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन " का नाम बदलकर " हिदुंस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन " रख लिया इस दल के गठन का पर इनका नारा था " हमारी लडाई आखिरी फैसला होने तक की लडाई हेँ - यह फैसला है जीत या मौत ।
इस संघ की नीतियों के अनुसार ९ अगस्त १९२५ को काकोरी काण्ड को अंजाम दिया गया । लेकिन इससे पहले हीअशफ़ाक उल्ला खान ने ऐसी घटनाओं का विरोध किया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जाएगा। और ऐसा ही हुआ। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओं - पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खाँ, रोशन सिंह तथा राजेन्द्र लाहिड़ी को क्रमशः १९ और १७ दिसम्बर १९२७ को फाँसी पर चढ़ाकर शहीद कर दिया। इस मुकदमे के दौरान दल निष्क्रिय रहा और एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा भगत सिंह भी शामिल थे लेकिन यह योजना पूरी न हो सकी।

[संपादित करें]चरम सक्रियता

आज़ाद के प्रशंसकों में पण्डित मोतीलाल नेहरूपुरुषोत्तमदास टंडन का नाम शुमार था। जवाहरलाल नेहरू से आज़ाद की भेंट जो स्वराज भवन में हुई थी उसका ज़िक्र नेहरू ने 'फासीवदी मनोवृत्ति' के रूप में किया है। इसकी कठोर आलोचनामन्मनाथ गुप्त ने अपने लेखन में की है। यद्यपि नेहरू ने आज़ाद को दल के सदस्यों को रूस में समाजवाद के प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए एक हजार रूपये दिये थे जिनमें से ४४८ रूपये आज़ाद की शहादत के वक़्त उनके वस्त्रों में मिले थे। सम्भवतः सुरेन्द्रनाथ पाण्डेय तथा यशपाल का रूस जाना तय हुआ था पर १९२८-३१ के बीच शहादत का ऐसा सिलसिला चला कि दल लगभग बिखर सा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद की इच्छा के विरुद्ध जब भगतसिंह एसेम्बली में बम फेंकने गए तो आज़ाद पर दल की पूरी जिम्मेवारी आ गई। सांडर्स वध में भी उन्होंने भगत सिंह का साथ दिया और फिर बाद में उन्हें छुड़ाने की पूरी कोशिश भी उन्होंने की । आज़ाद की सलाह के खिलाफ जाकर यशपाल ने २३ दिसम्बर १९२९ को दिल्ली के नज़दीक वायसराय की गाड़ी पर बम फेंका तो इससे आज़ाद क्षुब्ध थे क्योंकि इसमें वायसराय तो बच गया था पर कुछ और कर्मचारी मारे गए थे। आज़ाद को २८ मई १९३० को भगवतीचरण वोहरा की बमपरीक्षण में हुई शहादत से भी गहरा आघात लगा था । इसके कारण भगत सिंह को जेल से छुड़ाने की योजना खटाई में पड़ गई थी। भगत सिंहसुखदेव तथाराजगुर की फाँसी रुकवाने के लिए आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गाँधीजी के पास भेजा जहाँ से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आज़ाद ने अपने बलबूते पर झाँसी और कानपुर में अपने अड्डे बना लिये थे । झाँसी में रुद्रनारायण, सदाशिव मुल्कापुरकर, भगवानदास माहौर तथा विश्वनाथ वैशम्पायन थे जबकि कानपुर में पण्डित शालिग्राम शुक्ल सक्रिय थे। शालिग्राम शुक्ल को १ दिसम्बर १९३० को पुलिस ने आज़ाद से एक पार्क में जाते वक्त शहीद कर दिया था।

[संपादित करें]शहादत

२५ फरवरी १९३१ से आज़ाद इलाहाबाद में थे और यशपाल को समाजवाद के प्रशिक्षण के लिये रूस भेजे जाने सम्बन्धी योजनाओं को अन्तिम रूप दे रहे थे। २७ फरवरी का दिन भारतीय क्रांतिकारी इतिहास का प्रलयकांरी दिन था पण्डित चन्द्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क (जिसका नाम अब चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क कर दिया गया है) में सुखदेव,सुरेन्द्र नाथ पांडे एवं श्री यशपाल के साथ चर्चा में व्यस्त थे। तभी किसी मुखविर की सूचना पर पुलिस ने उन्हें घेर लिया। सुरेन्द्र नाथ पांडे एवं यशपाल ने आजाद से कहा की हम पुलिस को रोकते हेँ आप जाये आपकी देश को जरुर‍त हेँ लेकिन आजाद ने मना कर दिया एवं आजाद ने और क्रांतिकारीयो को भगा दिया और स्वम् पुलिस से भिड् गये आजाद ने तीन पुलिस वालो को मौत के घाट उतार दिया एवं सौलह को घायल कर दिया आजाद ने प्रतिञा ले ऱखी थी की वे कभी जिंदा पुलिस के हाथ नही आयेगें इस प्रतिञा को पुरी करते हुये जब मुठभेड् के दौरान आजाद के पास अंतिम गोली बची तो उस गोली को उन्होनें स्वंम् को मार लिया और आज़ाद शहीद हुए। पुलिस आजाद से इतनी भयभीत थी की उनके शरीर के पास काफी देर तक नही गयी भयभीत पुलिस ने श्री आजाद के वीरगति को प्राप्त होने के बाद भी उनके मृत शरीर प‍र कई गोलिया दागी थी । पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये श्री आजाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जेँसे ही आजाद की शहादत की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड बाग में उमड पडा लोग जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुये उस वृक्ष की पूजा करने लगे वृक्ष के झंडीया बांध दी गई लोग उस स्थान की माटी को कपडो में शीशीयों में भरकर ले जाने लगे। पूरे इलाहाबाद में आजाद की शहाद्त की खबर से जब‍रदस्त तनाव हो गया शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानो प‍र हमले होने लगे लोग सड्कों पर आगये।
आज़ाद के शहादत की खबर जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को मिली तो उन्होंने तमाम काँग्रेसी नेताओं व अन्य देशभक्तों को इसकी सूचना दी। । बाद में शाम के वक्त लोगो का हुजुम शमशान घाट कमला नेहरु के साथ पहुंचा और आजाद की अस्थियाँ लेकर युवकों का एक जुलूस निकला इस जुलुस में इतनी भीड् थी की इलाहाबाद की मुख्य सड्क पर जाम लग गया ऐसा लग रहा था की जेँसे इलाहाबाद की जनता के रूप में सारा भारत देश अपने इस सपूत को अंतिम विदाई देने उमड् पडा जुलुस के बाद सभा हुई। सभा को शचिन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी ने सम्बोधित करते हुए कहा कि जैसे बंगाल में खुदीरामबोस की शहादत के बाद उनकी राख को लोगों ने घर में रखकर सम्मानित किया वैसे ही आज़ाद को भी सम्मान मिलेगा। सभा को जवाहरलाल नेहरू ने भी सम्बोधित किया। इससे पूर्व ६ फरवरी १९२७ को मोतीलाल नेहरू के देहान्त के बाद आज़ाद उनकी शवयात्रा में शामिल हुए थे क्योंकि उनके देहान्त से क्रांतिकारियों ने अपना एक सच्चा हमदर्द खो दिया था।

[संपादित करें]व्यक्तिगत जीवन

आजाद एक देशभक्त थे। अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों से सामना करते वक्त जब उनकी पिस्तौल में आखिरी गोली बची तो उसको उन्होंने खुद पर चला कर शहादत दी थी। उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख था और इसका उपयोग उन्होंने कई दफ़े किया। एक बार वे दल के लिए धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद डेरे के पाँच लाख की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाए पर वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि साधु मरणासन्न नहीं था और वे वापस आ गए। रूसी क्रान्तिकारी वेरा किग्नर की कहानियों से वे बहुत प्रभावित थे और उनके पास हिन्दी में लेनिन की लिखी एक किताब भी थी। हंलांकि वे कुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने मे ज्यादा आनन्दित होते थे। जब वे आजीविका के लिए बम्बई गए थे तो उन्होंने कई फिल्में देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था पर बाद में वे फिल्मो के प्रति आकर्षित नहीं हुए। एक बा‍र जब आजाद कानपुर के मशहुर व्यवसायी श्री प्यारेलाल अग्रवाल के निवास पर एक समारोह में आये हुये थे । श्री अग्रवाल देशभक्त थे क्रातिकारियो की आथि॑क मदद किया क‍रते, आजाद और अग्रवाल बाते कर रहे थे तभी सूचना मिली की पुलिस ने हवेली को घेर लिया, श्री प्यारेलाल घबरा गये और आजाद सें कहने लगे वे अपनी जान दे देंगे पर उनको कुछ नही होने देंगे आजाद हंसते हुये बोले आप चिंता ना करे में यांहा से मिठाई खायें बिना नही जाने वाला फिर वे सेठानी जी से बोले आओ भाभीजी बाह‍र मिठाई बांट आये आजाद ने गमछा सिर पर रखा मिठाई का टो़करा उठाया और सेठानी जी के साथ चल दिये दोनो मिठाई बांटते बाहर आगये बाहर खडी पुलिस को भी मिठाई खिलाई पुलिस की आँखो के सामने से आजाद मिठाई वाला बनकर निकल गये पुलिस सोच भी नही पायी ऐसे थे आजाद । चन्द्रशेखर आजाद हमेशा सत्य बोलते थे, एक बार आजाद पुलिस से छिपकर जंगल में साधु के भेष में रह रहे थे एक दिन जंगल में पुलिस आगयी देवयोग से पुलिस आजाद के पास पहुंच गयी पुलिस ने साधु वेश धारी आजाद से पूछा बाबा आपने आजाद को देखा क्या साधु भेषधारी आजाद बोले बच्चा आजाद को देखना क्या हम तो हमेशा आजाद रहते‌ हें हम ही आजाद हेँ। चन्द्रशेखर आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारंभ किया गया आंदोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्‍वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों के बाद 15 अगस्‍त सन् 1947 को भारत की आजादी का उनका सपना पूरा हुआ।आजाद सभि क्रन्नतिकरियो मे से एक थे।

[संपादित करें]श्रद्धांजलि

चन्द्रशेखर की मृत्यु से मेँ आहत हुं ऐसे व्यक्ति युग में एक बार ही जन्म लेते हेँ। फिर भी हमे अहिंसक रुप से ही विरोध क‍रना चाहिये।
- महात्मा गांधी 
चन्द्रशेखर आजाद की शहादत से पूरे देश में आजादी के आंदोलन का नये रुप में शंखनाद होगा। आजाद की शहादत को हिदुंस्तान हमेशा याद रखेगा।
- पण्डित जवाहर लाल नेहरू 
पण्डितजी की मृत्यु मेरी निजी क्षति हेँ मेँ इससे कभी उबर नही सकता।
- पण्डित मदन मोहन मालवीय 
देश ने एक सच्चा सिपाही खोया।
- मोहम्मद अली जिन्ना
आजाद सत्य का सहारा लेकर ही अन्ग्रेजो से मुकाब्ला करते थे -घनश्याम दास सुमन जानकि नगर ।==यह भी देखें==

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