सोमवार, 27 जुलाई 2020

सुखद-स्मृति

#सुखद_स्मृति
आज बाबा तुलसी जयंती है। 

घर के पूजा कक्ष में विराजे श्री रामचरितमानस से जुड़ी 1997 की सुखद स्मृति मेरे साथ है । तब मैं ज्ञानदीप स्कूल जांजगीर का छात्र था। अचानक से प्राचार्य कक्ष से बुलावा आता है और कहा जाता है भाषण प्रतियोगिता है ,तुमको जाना है।

कब ?? कहां ??क्या विषय ??

अरे अभी जाना है , विषय वहीं पता चलेगा । गाड़ी आ रही होगी ,उसमे जाना है । 

..थोड़ा अटपटा तो लगा पर अभी आगे तो बहुत कुछ होना था ....
....लिंक रोड जांजगीर के पास ज्ञानदीप स्कूल के तब के ऑफिस के पास खड़ा था ...गाड़ी के इंतज़ार में !!

...अचानक पुलिस वाली गाड़ी आ गयी ...मेटाडोर ..जिसे आमतौर पर डग्गा गाड़ी भी कहते हैं।
..पटेल सर ने कहा इसी में जाना है। 

मैंने कहा "कहाँ जाना है " 

"जेल जाना है, वहीं कार्यक्रम है...और सुनो जीत के आना है "
- ये हमारे प्राचार्य महोदय कटकवार सर की आवाज थी ...

...फिर क्या लटक-झटक के डग्गा गाड़ी से मानो शहर भ्रमण कर पहूंच गए जेल...
...मुझे आज भी याद है मैं डग्गा गाड़ी के अंदर के साइड में बैठा था, रुमाल से मुंह छिपाके...कोई देख ले तो क्या सोचेगा।
...खैर जेल ..मतलब तबके उपजेल खोखरा पहुँचके पहले छोटे दरवाजे से फिर बड़े दरवाजे से होके अंदर...
...धकधकी ...कैदियों को देखके ।
...वैसे हमसे ज्यादा विस्मृत वो लग रहे थे। 
...अंदर एक बैरक के आगे बरामदे में हमे बैठाया गया। लगभग सभी स्कूल के बच्चे आये आये थे। सामने मंच पर अधिकारी और श्रोता बने वहां के कैदी।।
...संचालक महोदय से पता चला आज 'तुलसी जयंती' है , और उन पर ही भाषण देना है। 
...अब तो हड़बड़ाना स्वाभाविक था। तुलसी जयंती पर क्या बोलूं ?
...कोई तैयारी तो थी नहीं और उस टाइम मोबाइल तो था नहीं, जो गूगल सर्च कर लेता..
मन ही मन दिमाग पर जोर देकर रामायण सीरियल को याद करने लगा। बीच-बीच में अम्मा ने जो कहानी सुनाई थी वो ..!!
...कच्चा-पक्का मनमे तैयारी के लिए एक फ्रेम बना लिया। 
..1-2 बच्चों के बाद मेरे बोलने की बारी आई ...
...औपचारिक शुरुवात के बाद मन मे जो तैयारी किया था , उसकी एक लाइन ही मुंह से निकला होगा कि अचानक से सामने बैठे एक कैदी पर नज़र पड़ी...वो एकटक मुझे ही देख रहा था...ध्यान से देखा तो लगभग सभी कैदी मानो कोई उम्मीद लगाए मुझे ही देख रहे थे । बाकी जो बाहर से गए थे , वो अपने मे खुसुर-फुसुर...!!
..फिर तो आगे शायद बाबा तुलसी की ही प्रेरणा रही होगी।।
 ...मन की सारी तैयारी किनारे और सीधा संवाद शैली में भाषण...सात्विक ..सकारात्मक !!
...उस दिन को कभी नहीं भूल सकता । वो मेरे शब्द ही नहीं थे शायद ...बस मुंह से निकल रहे थे। अजीब सी जादुई पाश में था मैं। 
बाबा तुलसी दास के जीवन से एक आदमी कैसे सीख सकता है, समाज मे तुलसी प्रासंगिक क्यों हैं ..इस विषय को वास्तव में मैं वहां बोलते-बोलते ही समझ पाया। मेरे सामने मेरी सोच और पहुंच से दूर एक ऐसा वर्ग था जो अलग-अलग कारणों से जेल में था। 
क्षणिक आवेश-क्रोध-बदले की भावना या तात्कालिक कारणों ने उनको वहां पहुंचाया । उन कारणों में संलग्न ऊर्जा को अगर सकारात्मक दिशा में ले जाते तो समाज को कितनों 'तुलसी'  का दर्शन हो पाता ! अपराधमुक्त समाज की कल्पना साकार हो पाती।।
...उस प्रतियोगिता में मुझे प्रथम स्थान मिला। और पुरुष्कार स्वरूप सदैव पूजनीय 'श्री रामचरितमानस' का यह गुटका मिला।। 
....हनुमान चालीसा तो पहले से ही पढ़ता था, इस इनाम के बाद सुंदरकांड भी पढ़ना प्रारम्भ किया। 
...आप भी बाबा तुलसी को जरूर पढ़ें !!!
प्रभु श्री राम सबका कल्याण करे 🙏🙏🙏
//जय श्री राम//

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें