रविवार, 17 जुलाई 2016

लघु-कथा

लघु-कथा
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''यहां के हम बादशाह है ठाकुर साहब ।।पत्ता नई हिलता अपने बिना ।।''
 अपने ऑफीस में उसने बड़े अभिमान से मुझसे कहा ।।
''अच्छा है भाई ।। हम सबको गर्व है तुम्हारी तरक्की पे''
...शुभ कामना देके मैं अंदर कमरे की बैठक में हिस्सा लेने चला गया ।
   बैठक हुयी ; चाय नाश्ता के बीच अंदर कमरे में चौड़ी छाती के साथ मित्र का प्रवेश हुआ ।
'' नाश्ता बच गया है सबको उठा लो "
ऊंची आवाज में घुरते हुए उसे बड़े साहब ने कहा ।।
..मित्र सिर नीचे कर प्लेट उठाने लगा ।।
      मैंने लम्बी सांस ली और अपने मोबाइल पे फ़ेसबूक ऑन किया । सामने उसी मित्र का आधे घण्टे पहले किया पोस्ट दिख गया ...
''करता हूँ बस अपने आप का
सुनता नहीं किसी के बाप का''
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