रविवार, 17 जुलाई 2016

प्रसंगवश

प्रसंगवश
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पहला प्रसंग -
चन्दनिया पारा के मित्र का कुत्ता चोरी हो गया। थाने में रिपोर्ट कराने गए तो पुलिस वाले झल्ला पड़े
" यही काम और बच गया था हम लोगो के लिए "
...खैर श्वान प्रेम में पड़े मेरे मित्र के बहस से बेबस होकर रिपोर्ट लिखा गया । पहचान के लिए कुत्ते के साथ लिया सेल्फ़ी काम आ गया ।।
....कुत्ता अभी तक नहीं मिला है ।।

दुसरा प्रसंग -
" भैया ए तोर कुकुर ल बने बाँध के रखबे ..भाग जाथे नई तो .."
....तिलई गाँव का दूधवाला मेरे घर में आते ही बोला ।।

" अरे नई ग मोर गब्लू बड़ा ईमानदार हे ..चल दिही त फेर आ जाही " मैं पूरे आत्मविश्वास से बोला ।।

वो हंसने लगा और बोला

" हे हे हे .. का बात करथस भैया ..काल हमर गाँव म पट्टा बंधाए कुकुर कहाँ ले भटक के आ गय रिसे । गाँव के एक झिन टुरा बिस्कुट दीस त ओकर पाछु पाछु चल दिस।
........महंगा कुकुर रिसे. मस्त दिखत रिसे !

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दोनों प्रसंग ने कुछ अनुत्तरित प्रश्न छोड़ दिया जो अब भी मेरे जेहन में है ..
कौन बदल गया है ...आदमी ...जानवर ...ईमानदारी ..।।
... शायद सब कुछ.. या कुछ भी नहीं ।।

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